Iftar Ki Dua- रमज़ान: तरवीह, अलविदा क्या है | abjano.com
साल 2024 मे रमज़ान 12 मार्च से शुरू होने वाला है चूंकि अभी शाबान का महीना चल रहा है इस हिसाब से चाँद के हिसाब से ये एक दिन आगे या पीछे हो सकता है। इस्लाम मज़हब को मानने वाले रमज़ान के बारे मे अच्छी तरह से जानते होंगे, ये इस्लामिक कलेंडर का 9वां महीना होता है जिसमे मुस्लिम अन्य महीनों की अपेक्षा रमज़ान मे कसरत से रब की इबादत करते हैं, दिन मे रोज़ा रखते है और शाम को iftar ki dua पढ़कर इफ्तार करते है। और रात मे तरवीह (Taraweeh) की नमाज़ अदा करते हैं। इस लेख मे हम रमज़ान मे होने वाले सारे कामो के बारे मे Discuss करेंगे मसलन Taraweeh क्या है, अलविदा क्या है आदि।
रमज़ान और रोज़ा क्या है Roza Kya Hai
रमज़ान इस्लामिक साल का सबसे
खास महीना होता है इसका हर मोमिन मुसलमान को बेसब्री से इंतज़ार रहता है जैसा कि
मैंने पहले ही बता दिया है कि ‘रमज़ान’ इस्लामिक महीने का नाम है इस्लामिक साल मे 12 महीने होते हैं। इस्लामिक
साल की शुरुआत मुहर्रम महीने से होती है और ज़ी-अल-कयदा (बकरीद) आखरी महीना होता है, इस्लामिक महीनो के नाम इस तरह हैं- 1.मुहर्रम, 2.सफर, 3.रबी-उल-अव्वल, 4.रबी-उल-आखिर, 5.जमादी-उल-अव्वल, 6.जमादी-उल-आखिर, 7.रजब, 8.शाबान, 9.रमज़ान, 10.शव्वाल, 11.ज़ी-अल-कयदा 12.ज़ी-अल-हिज्जा।
रमज़ान का महीना आते ही दुनिया
भर के मुसलमान एक विशेष प्रक्रिया को फॉलो करने लगते हैं और ऐसा पूरे महीने तक
करते हैं जैसे ही रमज़ान का चाँद दिखता है उसके अगले दिन से मुसलमान उपवास रखने
लगते हैं इसी उपवास को रोज़ा कहा जाता है इसमे रोज़ेदार खुद को हर बुरे कामों से
बचाता है और रब की खूब इबादत करता है।
अशरे क्या होते हैं Ashra kya hai
रमज़ान का महीना 30 या 29 दिनों
का होता है इस पूरे महीने को 10-10 दिनों के 3 भागों मे बाँटा गया है हर एक भाग को
‘अशरा’ कहा जाता
है। यानि रमज़ान मे 3 अशरे होते हैं हर अशरा अलग-अलग होता है। पहला अशरा रहमत का
होता है इस अशरे मे बंदों पर खुदा की बे-इंतिहा रहमत बरसती है, पूरे महीने मे सवाब का सिलसिला 70 गुना बढ़ जाता है यानि कोई मुसलमान अगर एक
नेक काम करता है तो उसको खुदा की तरफ से उस काम का 70 गुना अजर मिलता है।
दूसरा अशरा मगफिरत का होता है
इस अशरे मे मुसलमान भूले या अनजाने मे या जान बूझ कर किए गुनाहों की रब से माफी के
तलबगार होते हैं, वैसे तो
मुसलमान साल मे कभी भी अपने गुनाहों से तौबा कर सकते है लेकिन इस अशरे मे रब जल्दी
तौबा कुबूल करता है। और वैसे भी इंसान साल भर शैतान के वस-वसों का शिकार बना रहता
है उसका दिल तौबा की तरफ जाता ही नही, चूंकि इस पाक महीने मे
सारे शैतान जंजीरों मे जकड़ लिए जाते हैं जिससे शयातीन मुसलमानो को बहका नही पाते
जिससे उन्हें तौबा की तौफीक मिल जात है। तीसरा अशरा जहन्नम से आज़ादी का होता है।
सहरी क्या है Sahri Kya Hai
आपने अक्सर सुना होगा मुसलमान
रमज़ान मे सुबह से शाम तक रोज़ा रखते हैं यानि वो दिन भर कुछ भी नही खाते यहाँ तक कि
पानी भी नही पीते हैं, यहाँ मै आपको
बताता चलूँ कि रोज़े की शुरुआत सुबह से नही बल्कि सुबह होने के पहले से होती है
यानि सूरज निकालने से पहले। हर रोज़ेदार सूरज निकालने के करीब डेढ़ या 2 घंटे पहले
नींद से उठता है और कुछ खाता पीता है इसी खाने-पीने को ‘सहरी’ कहा जाता है एक रोज़े की शुरुआत यहीं से होती है। अगर कोई रोज़ेदार सहरी
नही कर पता या सहरी के वक़्त उसकी नींद नही खुलती है तो वो बिना खाये पिये या सहरी
किये बिना ही दिन के रोज़े की नीयत कर लेता है और रोज़ा रख लेता है।
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इफ्तार क्या है Iftar Kya Hai
जब मुस्लिम समुदाय के लोग रोज़ा रखकर पूरा दिन गुज़ारने के बाद सूर्यास्त के समय जो खाते-पीते हैं इसी को ‘इफ्तार’ या रोज़ा खोलना कहा जाता है। इफ्तार के तुरंत बाद सभी मुसलमान नमाज़ अदा करते हैं। इफ्तार का समय सूर्यास्त के तुरंत बाद होता है।
इफ्तार की दुआ Iftar Ki
Dua
इफ्तार का वक़्त बहुत ही बरकत वाला होता है इस समय जो भी दुआ मांगी जाती है अल्लाह उसे कुबूल फरमाता है। रोज़ा खोलने के समय Iftaar ki Dua पढ़ी जाती है ये दुआ का पढ़ना अपने रब का शुक्र अदा करना है ये दुआ इस तरह है-
" اَللّٰهُمَّ اِنَّی لَکَ صُمْتُ وَبِکَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّلْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ "
हिन्दी– अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमतो वबेका आमनतो व-अलैका तवक्कलतो वअला रिज़क़िका अफ़तरतों
अनुवाद- या अल्लाह मैंने रोज़ा रखा और ईमान लाया तुझ पर और भरोसा
किया तुझ पर और इफ्तार किया तेरे दिये रिज्क़ पर।
इफ्तार की दुआ कब पढ़नी चाहिए
मुस्लिम समुदाय मे हर मुसलमान
ये जनता है कि iftar ki dua इफ्तार करने
के पहले पढ़ी जाती है लेकिन यहाँ मै आपको बता दूँ कि आप गलत है ये दुआ इफ्तार के
पहले नही बल्कि खजूर से रोज़ा खोलने के बाद पानी पीकर पढ़नी चाहिए और फिर बाकी चीजे
खानी चाहिए। इसका मशवरा आप अपने यहाँ किसी आलिमे-दीन से कर सकते हैं।
सहरी करने के बाद दिन मे रोज़ा
रखने के लिए ये सहरी की दुआ पढ़ी जाती है
وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ
अनुवाद- मैं कल के रोज़े की नियत करता हूँ, रमज़ान महीने में।
सहरी की दुआ कब पढ़नी चाहिए
जब आप सहरी से फारिग होजाए
यानि पूरी तरह सहरी कर ले तब सहरी खत्म होने मे जब 4-5 मिनट बाक़ी हो तब सहरी की
दुआ पढ़ लेनी चाहिए।
तराविह क्या है Taraweeh kya hai
‘तारवीह’ अरबी शब्द ‘र-व-ह’ के मूल से आया है जिसका मतलब होता है ठहराव या ‘आराम’। तरावीह एक ‘सुन्नत-मुअक्किदा’ नमाज़ है जो रमज़ान के महीने मे रात मे अदा की जाती है। ये नमाज़ पूरे महीने चलती है यानि 30 दिनो तक। चूंकि ये नमाज़ रात मे अदा की जाती है और रात आराम करने का समय होता है लेकिन मुसलमान आराम को छोड़कर इस नमाज़ को अदा करते हैं इसीलिए इस नमाज़ को ‘तरावीह’ (Taraweeh) नाम से जाना जाता है। ये नमाज़ समूह मे यानि जमात के साथ अदा की जाती है।
दीगर पाँच वक़्त की नमाजों की
तुलना मे तरावीह की नमाज़ अदा करने मे ज़्यादा वक़्त लगता है क्योंकि इसमे कुरान पाक
की लंबी सूरतों की तिलावत बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ मे की जाती है। पूरे महीने मे
तरावीह की नमाज़ मे हाफिज़ साहब एक खतम-ए-कुरान करते हैं और ऐसा हर मस्जिदों मे होता
है। तरावीह मे खतम-ए-कुरान होने के बाद रमज़ान के कुछ दिन अगर बच जाते हैं तो उन
बाकी बचे दिनो मे ‘सूरह
तरावीह’ पढ़ी जाती है इसमे कुरान की छोटी सूरतों की
तिलावत की जाती हैं सूरह तरावीह थोड़े कम वक़्त मे अदा हो जाती है इसमे तरावीह जितना
लंबा समय नही लगता।
आपने अक्सर सुना होगा कि किसी
मस्जिद मे 10 दिन मे तरावीह खतम हो जाती है किसी मे 15 दिनो मे खतम होती है तो किसी मस्जिद मे
खतम होने मे 20 दिन लगता है, यहाँ मैं बता दूँ कि 10,15, 20 दिनो मे मस्जिदों मे तरावीह खतम नही होती तरावीह
तो पूरे रमज़ान चलती है बल्कि इतने दिनो मे खतम-ए-कुरान होता है, और हम समझ लेते हैं कि तरावीह खतम हो गई। खतम-ए-कुरान होने के बाद बाक़ी
बचे दिनो मे सुरह तरावीह जमात से अदा की जाती है।
अलविदा क्या है Alvida Kya Hai
रमज़ान मे अलविदा का मतलब
आखिरी जुमा से होता है रमज़ान महीने के आखिरी जुमा को जुमुअतुल-विदा कहा
जाता है। ‘अलविदा’ शब्द से ही पता चल रहा है कि इसका अर्थ विदाई से है, जुमुअतुल-विदा वाले दिन मुसलमान माहे-रमज़ान को विदाई देते हैं। रमज़ान का
ये जुमा दीगर जुमा की ही तरह होता है बस ये जुमा रमज़ान कि विदाई वाला जुमा होता
है। जब आखरी जुमा आता है तो इस बात का अफसोस सताने लगता है कि रमज़ान हमसे विदा ले
रहा है, पता नही अगले साल ज़िंदगी रही न रही ये महीना हमे
नसीब होगा कि नही होगा, क्योंकि रमज़ान का महीना मुसलमानो के
नजदीक बहुत ही पवित्र होता है इसीलिए उनको रमज़ान जाने का गम सताने लगता है, दरअसल जाने के गम से बड़ा दुबारा न मिलने का गम होता है इसी कश्मकश मे
जुमुअतुल-विदा की नमाज़ अदा की जाती है और रमज़ान को रुखरत कर दिया जाता है। इस जुमा
के बाद रमज़ान के बाकी बचे दिनो मे दीगर दिनो की तरह ही रोज़ा रखा जाता है और फिर
चाँद देखकर अगले दिन ईद मनाई जाती है।
रोज़ा का सही मायने क्या है
रमज़ान के महीने मे हर मुसलमान
भूख-प्यास का रोज़ा रख ही लेता है लेकिन रोज़ा का असली मायने केवल भूखे-प्यासे रहना
नही है रमज़ान के महीने मे आदमी को शरीर के हर अंग का रोज़ा रखना चाहिए, मसलन आँख से कोई बुरी चीज़ ना देखना ये आँख
का रोज़ा है, मुँह से कोई गलत बात ना कहना चुगली ना करना ये
ज़ुबान का रोज़ा है, किसी बुरे काम की तरफ कदमों को ना बढ़ाना
पैरों का रोज़ा है इसी तरह हाथों का इस्तेमाल कोई बुरे काम मे ना करना।
इस तरह से अगर आप रमज़ान मे
रोज़ा रखेंगे तो इससे आप का दिल भी साफ हो जाएगा और आपको को रोज़े की फजीलत भी मिलती
रहेगी। लेकिन हमारा आपका हाल इससे ठीक उलट है हम आप भूख का रोज़ा तो रख लेते है
लेकिन साथ ही एक दूसरे की चुगली भी करते नज़र आते हैं, हाथों और पैरों से भी हम गुनाहों मे पड़े
रहते हैं। रोज़ा रखने का असली मतलब है कि आप पूरे दिल से शरीर के हर अंगो से रोज़ा
रखें किसी भी गलत या बुरे कामों मे कतई ना पड़े।
उम्मीद करता हूँ की आपको हमारे
इस लेख मे कुछ नया जानने को मिला होगा अगर आप यहा Iftar
ki dua जानने के लिए आए थे तो वो भो आपको पता चल गया होगा। सुविधा
के लिए मैंने रमज़ान मे होने वाली हर प्रक्रिया के बारे मे समझाने की पूरी कोशिश की
है जैसे रमज़ान मे Taraweeh क्या होती है, iftaar kya hai, Sahri क्या
है, इनकी पढ़ी जाने वाली Dua क्या-क्या
है, इनको कब पढ़ना चाहिए आदि इन सब Topics को कवर किया है आशा करता हूँ की जानकारी अच्छी लगी होगी।
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